बोधगया का मुचलिंद सरोवर जहां भगवान बुद्ध को सात बार लिपटकर सांप ने बारिश और ठंढ़ से बचाया

बौद्ध धर्म का प्रारम्‍भ बिहार के बोधगया से हुआ। बुद्ध पूर्णमा के दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्‍त हुआ। बोधगया में सबसे प्रमुख रूप से महाबोध‍ि मंदिर को ही देखन के लिए पर्यटक आते हैं। इस पुरे परिसर को महाबोध‍िमंडल कहते हैं। इसमें ही भगवान बुद्ध सात सप्‍ताह बिताते हैं।

बोध‍ि प्राप्ति के सात सप्‍ताह तक रुके थे बुद्ध बोध गया

छ: वर्ष की कठिन साधना को छोडने के बाद जब भगवान बुद्ध सुजाता का खीर खाने के बाद पुन: से ध्‍यान करने पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे तो उन्‍हें सम्‍बोध‍ि की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्‍त करने के बाद भगवान बुद्ध सात सप्‍ताह तक बोध गया में रुके थे। सात सप्‍ताह में वे बोध‍िमंडल के सात स्‍थानों पर वे एक-एक सप्‍ताह बिताये। मुचलिंदि की कहानी छठे सप्‍ताह की है।

मुचलिंद नामक नाग

जो सांप भगवान बुद्ध को लिपटकर अपना फन से बुद्ध को बचा रहा है उसका नाम है मचलिंद। यह सांप वहीं पर रहता था।

वृक्ष का नाम भी मुचलिंद

जैसा कि पालि साहित्‍य में वर्णित है। उसके अनुसार छठे सप्‍ताह में भगवान जिस वृक्ष के पास पहुंचे ध्‍यान करने के लिए उसका नाम मुचलिंद था। वहां पर मुचलिंद नाम का सांप भी रहता था।

सात बार लिपटकर बुद्ध को बचाया  

मुचलिंद नामक नाग जब देखा कि अचानक से बारिश होने लगी। भगवान बुद्ध ध्‍यान की अवस्‍था में बैठे हैं। उन्‍हें ठंढ़ लग रही है। वे तो लोक हित के लिए ही ज्ञान की प्राप्ति क‍िये हैं। उन्‍हें ठंढ़ न लगे, मच्‍छर न काटे, मक्‍खी भी परेशान न करे, किसी भी प्रकार से उन्‍हें कोई कष्‍ट न हो। कोई सांप या ब‍िच्‍छू भी उन्‍हें न काट सके। कोई रेंगने वाला जीव भी उन्‍हें परेशान न करे। इनता सारा बातों का ख्‍याल कर वह नाग भगवान के शरीर में सात बार लिपटकर उतके सिर के उपर अपना फन फैलाकर भगवान बुद्ध की रक्षा की।  

छठे सप्‍ताह की घटना  

भगवान मुचलिंद नामक वृक्ष के पास जाकर एक सप्‍ताह बिताते हैं। वहां वे एक सप्‍ताह तक निवार्ण और मुक्ति के विषय में चिंतन मनन करते हैं।

जेठ के महिने में अचानक होने लगी घनघोर बारिश

उस समय एक सप्‍ताह तक ठंडी हवा चलती रही और बादल आकाश में छाये रहे। भगवान को ठंड से बचाने के लिए एक नागराज वहां पर आए और सात बार लपेटकर उपर से फन बनाकर उन्‍हें शीत, उष्‍ण, डंस, मच्‍छर और ठंडी हवा से बुद्ध को बचाया।  जब ठंड समाप्‍त हो गया और बादल पुरी तरह से हट गए तो वह नागराज बालक के रूप में बुद्ध के पास आया।

भगवान बुद्ध ने क्‍या कहा मुचलिंद से

भगवान बुद्ध  ने उससे पालि में इस प्रकार कहा:-

‘‘सुखो विवेको तुट्ठस्स, सुतधम्मस्स पस्सतो।

अब्यापज्‍जं सुखं लोके, पाणभूतेसु संयमो॥

‘‘सुखा विरागता लोके, कामानं समतिक्‍कमो।

अस्मिमानस्स यो विनयो, एतं वे परमं सुख’’न्ति॥

  जिसका अर्थ है कि

                              सन्‍तुष्‍ट देखनहार श्रुतधर्मा, सुखी एकान्‍त में।

                              निर्द्वन्‍द्व सुख है लोक में, संयम जो प्राणी मात्र में।।

                              सब कामनायें छोळना, वैराग्‍य है सुख लोक में।

                              है परम सुख निश्‍चय वही, जो साधना अभिमान का।। 

यह कहानी पालि साहित्‍य के विनय पिटक के महावग्‍ग में पालि भाषा में वर्णत है।

Pic Credit: Bihar Government Tourism

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