अगर आप बोधगया आ रहे हैं तो उस स्थान के बारे में पुरी जानकारी ले लें जहां कि भगवान बुद्ध ने एक सप्ताह तक पैदल चलते हुए बिताया था। पर्यटक इस स्थान को न सिर्फ देखते हैं बल्कि वें यहां पर पैदल चलना भी पसंद करते हैं।
बिहार में पर्यटकों का आना लगभग सालों भर लगा रहता है। यहां पर घरेलु और वैश्विक दोनों ही प्रकार के पर्यटक आते हैं। बोधगया के महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध न सात सप्ताह में सात अलग अलग स्थानों पर एक एक सप्ताह के लिए अलग अलग कार्य करते बिताये।
बोधगया ही वह जगह है जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे सात सप्ताह तक बोधगया में ही रुके। यहां पर बिताये उनचास दिनों में वे जो भी कार्य किये वे एक सप्ताह तक करते रहे। उसी में से एक ऐसा जगह है वहां वे पुरे एक सप्ताह तक पैदल चलते रहे।
रत्न चंकमन
इस स्थान को को रत्न चंकम कहते हैं। रत्न का अर्थ कि जिस जगह पर भगवान बुद्ध स्वयं ही पैदल चले हों वे किसी रत्न से कम महत्वपूर्ण नहीं है। उसका महत्व तो रत्न से भी कहीं अधिक है। यहीं पर वे ज्ञान प्राप्ति के बाद एक सप्ताह तक पैदल चले हैं।
महाबोधि मंदिर से उत्तर दिशा में
यह स्थान महाबोधि के एकदम पास में ही है। दिशा के दृष्टि से यह महाबोधि मंदिर के उत्तर दिशा में है। रजब आप महाबोधि मंदिर से बाहर निकलते हैं तो आपको अपनी बाई ओर ही मुड जाना है। जो जगह सबसे पहले दिखाई देगा वहीं है रत्न चंकम चैत्य। जब महाबोधि मंदिर के सामने खडे होते हैं ऊंचे स्थान पर तो वहां से भी यह चैत्य आपको दिखाई देता है।
कमल के फूल के आकार का
यह स्थान एक चबुतरे के जैसा है। एक एक कदम की दूरी पर एक एक चबुतरा है। चतुतरा के उपर कमल के फूल के आकार की आकृति बनी हुई है।
श्रद्धालु फूल चढ़ाते हैं
बौद्ध श्रद्धालु स्नेह भाव इस स्थान पर फूल चढ़ाते हैं। महाबोधि मंदिर के तरफ से भी इसे फूलों से सजाया जाता है।
महाबोधि मंदिर से उत्तर दिशा में है रत्न चंकम चैत्य
पूरब-पश्चिम की दिशा में चलते रहे
रत्न चंकम चैत्य वैसे है तो महाबोधि मंदिर के उत्तर की दिशा में। परन्तु बुद्ध जिस दिशा में चले थे वह है पुरब से पश्चिम की ओर। बुद्ध यहां पर अनिमेंष चैत्य से आये थे।
रत्न चंकम है पालि भाषा में नामकरण
पालि भाषा में ही भगवान बुद्ध के सभी उपदेश को सबसे पहले संरक्षित किया गया। पालि में ‘क्र, प्र, च्र’ इत्यादि नहीं होते हैं। इसीलिए रत्न चंक्रम को ही पालि भाषा में रत्न चंकम कहा जाता है। चूंकि बौद्ध साहित्य का मूल स्रोत पालि साहित्य ही है इसलिए इसका नामकरण भी पालि भाषा में ही हुआ है।
बोधि प्राप्ति के तीसरे सप्ताह की घटना
तीसरे सप्ताह में बुद्ध पूर्व से पश्चिम की ओर टहलते हुए बिताए। पुरा एक सप्ताह तक वे टहलते रहे। इस टहलने के स्थान को रत्न-चंक्रम चैत्य के नाम से जाना जाता है। इस समय, उन्होंने अपने दर्शन किए हुए सत्यों की समझ को और गहरा करना जारी रखा।
Pic credit: Mahabodhi Temple, Bodhgaya