जानें बुद्ध की माता महामाया के ‘सूंड में श्‍वेत कमल लिये हाथी’ के सपने के बारे में

आप सपना तो जरुर देखे होंगे। ऐसा कोई भी मनुष्‍य नहीं जो साने के दौरान सपना नहीं देखा हो। आप भी कभी न कभी सपना जरुर देखे होंगे। सपने कई प्रकार के होते हैं। अच्‍छे, बुरे, डरावने, मनमोहक, रोमांचक, उदासी पैदा करने वाले, बादलों की सैर कराने वाले, पहाड़ पर से ढ़केलने वाले,  किसी से डरकर भागने वाले आदि। क्‍या आप नींद में देखे गये सपने के फल पर विश्‍वास करते हैंॽ

प्राचीन भारत में भारत में कई प्रकार की विद्याएं उपलब्‍ध थीं। उनमें से एक थी:- स्‍वपन विद्या। ण्‍इ विद्या के विशेषज्ञ सपने के बारे में जानकर भविष्‍य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाते हैं।

भगवान बुद्ध जब बोध‍िसत्‍व थे। जब वे बुद्ध नहीं हुए थे। बोधगया में ज्ञान प्राप्‍त करने से एकदम पहले वाले जीवन में वे तावतिंस लोक (स्‍वर्ग) में रह रहे थे। वे वहां से जन्‍म लेने के स्‍थान के बारे में सोचे। जब जन्‍म स्थान, माता आदि पांच चीजों का निर्धारण कर लिये तो वे महामाया के गर्भ में प्रवेश करने के लिये तावतिंस लोक से कोसल आकाश मार्ग से आये। श्‍वेत हाथी के रूप में आये। वे माता के गर्भ में श्‍वेत कमल सूंड में लिये माता के कुक्षि में प्रवेश किया। जिस रात वे मां के गर्भ में प्रवेश किये उसी रात मां महामाया ने एक सपना देखा।

उसी सपने की कहानी आज मैं आपको इस ब्‍लॉग में बताउंगा।

आषाढ़ पूर्णिमा से सात दिन पूर्व

आषाढ़ पूर्णि‍मा का दिन था। इस दिन आज भी भारत में खेती बारी से संबंधित उत्‍सव मनाया जाता है। आज से लगभग 2500 वर्षों से भी अधिक समय पहले छठी-पांचवीं सताब्‍दी ई०पू० में कोसल देश में भी हर्ष उल्‍लास का माहौल था। आषाढ़ पूर्णिमा के उत्‍सव में कपिलवस्‍तु के सभी निवासी खुशियां मना रहे थे। जश्‍न के माहौल में डूबे थे। बच्‍चे, युवा, जवान, प्रौढ़, बूढ़े,महीला, बच्‍चि‍यां सभी लोग नाच गा रहे थे। सब के सब प्रसन्‍नता से आषाढ़ पूर्णमा का अत्‍सव मना रहे थे।

सिद्धार्थ की माता महामाया सात दिन पहले से ही इसकी तैयारी में जुट गई थीं। पूर्णमा से सात दिन पूर्व ही सदाचार का कडाई से पालन करने लगी थीं। अपने राज महल को सजाने सवारने लगी थीं। पुरा का पुरा राजमहल सजा हुआ था। सात दिन से लगातार महारानी महामाया उत्‍सव मना रहीं थीं।

आषाढ़ पूर्ण‍िमा के दिन

आषाढ़ पूर्ण‍िमा के दिन महारानी प्रात: काल उठकर सबसे पहले सुगंधित जल से स्‍नान कीं। आज भी पूर्ण‍िमा के दिन पूजा करने के लिए स्‍नान करने का विध है। वह चार लाख का दान दीं। इसके बाद वह स्‍वर्ण आभूषणों से सजकर भोजन पकायीं। स्‍वादिष्‍ट भोजन ग्रहण कीं। वह सारा कार्य पूर्ण‍िमा के नियम के अनुसार ही कर रहीं थीं। इसके बाद महामाया भव्‍य और दिव्‍य अलंकरणों से सजे हुए शयनागार में आराम करने चलीं गईं। जब पलंग पर लेटीं तो वह एक अलौकिक स्‍वपन देखीं।

महामाया का अलौकिक स्‍वपन

महारानी महामाया देखीं कि बोधिसत्‍व श्‍वेत हाथी के रूप में तावतिंस लोक से आ रहे हैं। उनका सूंड बहुत ही सुन्‍दर लग रहा है। वे सूंड में श्‍वेत कमल का फूल लिये हुए हैं। मधुर नाद करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वे हाथी के रूप में बोधिसत्‍व सबसे पहले महारानी की सय्या को तीन बार प्रदक्षिणा किये। इसके बाद सिद्धार्थ गौतम जो कि बोध‍िसत्‍व के वेश में थे वे उत्तराषाढ़ नक्षत्र में महामाया के गर्भ में प्रवेश किये।

Pic Credit: Facebook

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