बौद्ध धर्म प्रारम्भ से ही समाज और परिवार को केन्द्र में मानकर चला है। बुद्ध ने जीवनत जीने के लिए दो रास्ते बताये। एक तो गृहत्याग करके पूर्णत: समाज सेवा करो और दूसरा यह कि गृहस्थ का जीवन अपनाकर समाज सेवा अपने परिवार के देखभाल करते हुए करो। इसलिय बौद्ध अनुयायी दो प्रकार के होते हैं:- गृहस्थ और गृहत्यागी।
आज लोगों का जीवन यापन बहुत बदल गया है। बुद्ध ने पांचवीं सदी ई०पू० में बोधगया में पैदल चारिका करते हुए उपदेश दिये थे। आज का दौर बहुत ही मशीनी हो गया है जहां व्यक्ति अक्सर खुद को आधुनिक जीवन के जाल में फंसा पाते हैं। बौद्ध उपदेश शान्ति और एकता की रोशनी को सामने लाते हैं। इसके आध्यात्मिक पहलुओं से परे बौद्ध धर्म का अद्वितीय योग्यता है विश्व के परिवारों को एक साथ लाने में। बुद्ध की देशना हमें समर्थन, करुणा, और मानवीय मूल्यों की भावना को और प्रगाढ़ करने की उपदेश देते हैं। इस ब्लॉग में, हम यह देखेंगे कि कैसे बौद्ध धर्म परिवार की जड़ों का मजबूत करता है।
बौद्ध धर्म ने सतर्क संवाद पर बड़ा जोर दिया है। अपने विचारों को आत्म विश्वास के साथ व्यक्त करने और दूसरों के विचारों को सहानुभूति के साथ सुनने की कला हमें बुद्ध ने सिखाया है। परिवारीक आत्मीयता हमें खुले संवाद करने, समझदारी से निर्णय लेने और परिवार के सदस्यों के बीच संबंध को गहरे और प्रगाढ़ करने में मदद करते हैं। सार्थक और पारस्परिक संवाद आपसी संघर्षों को खत्म करने में मदद करता है। इससे आपसी समर्थन और सहयोग करने की भावना बढ़ती है। इससे परिवार में आत्मीय वातावरण बढ़ता है।
बौद्ध शिक्षाओं के केंद्र में मैत्री, करुणा, मुदिता (प्रसन्नता) और उपेक्षा है। इसे ब्रह्मविहार कहते हैं। अपनों के साथ साथ दूसरों के भले का भीख्याल रखना बौद्ध धर्म हमें सीखाता है। बौद्ध धर्म में मूलत: परिवार को ही प्राथमिकता दी है। परिवार का प्रत्येक सदस्य मूल्यवान है और उसका विचार को समझे जाने से ही आत्मीय वातावरण बनाता है। करुणा का यह भाव न सिर्फ एक परिवार तक या उससे सदस्यों तक ही सिमित होनी चाहिए बल्कि एक मजबूत और सहनशील संबंध के लिए यह भावना संसार के सभी जीवों के प्रति होनी चाहिए।
परिवार के सदस्य जब अपने दैनिक जीवन में सतर्कता (Mindfulness) को शामिल करते हैं, तो यह दैनिक गतिविधियों को संबंध पर काफी साकारात्मक प्रभाव डालता है। परिवार के सदस्यों के उन्नति पर प्रसन्नता व्यक्त करना, हमेंशा उनके सुख दु:ख में उनके साथ खडे होना, सभी लोगों के प्रति मित्रता का भाव हमारे आचरण में अपनत्व का भाव भर देते हैं। इससे परिवारीक संबंध और गहरा करते हैं दूसरों के साथ भी पारिवारिक संबंध बन जाते हैं। इससे सहयोग की भावना को भी बढ़ावा मिलता है।
बौद्ध धर्म जीवन की सभी चीजों की अनित्यता को सिखाता है। यह बौद्ध धर्म का प्रमुख सिद्धांत है। यह व्यक्तियों को वर्तमान में जीवन जीने के महत्व का मूल्यांकन करने और मूल्यवान समय के लिए कृतज्ञ बनाने की प्रेरणा देता है। परिवार में यह सिद्धांत कृतज्ञता को बढ़ावा देता है। साथ मिलकर समय बिताने का आभास करने के लिए भी हमारा मन को तैयार करता है। बौद्ध धर्म परिवार के सदस्य को अपने रिश्तों को प्राथमिकता देने और स्थायी यादें बनाने के लिए प्रेरित होते हैं।
परिवार के रूप में बौद्ध धर्म पूजा पाठ, पूजनीय स्थलों का भ्रमण करने को सीखाता है। चाहे यह परिवार में सामुहिक ध्यान में भाग लेना हो, मंदिर के कार्यक्रमों में शामिल होना हो, या बौद्ध पर्वों का आनंद लेना हो, ये गतिविधियां साझा अनुभवों के क्षण बन जाती हैं। इससे ही परिवार में एकता और मैत्री की भावना को मजबूती मिलती है।
बौद्ध धर्म में भिक्षु को पण्य-क्षेत्र कहा गया है। यह सिद्धान्त हमें शांति की खेती करने के लिए बताता है। मतलब शान्ति से जीवन जीने के लिए प्ररित करता है। इससे चुनौतियों के सामने झुकने के बजाए हमें उससे लडने के लिए मानसिक और भावनात्मक स्थिरता बनाए रखने की कला का अभ्यास होता है। बौद्ध सिद्धांतों से प्रभावित परिवार संघर्षों को एक शांत और संतुलित मन से देखता है।
बौद्ध धर्म एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए ज्ञान की पारंपरिक सूचना को प्रोत्साहित करता है। इसी सिद्धान्त ने कई पीढि़यों तक पालि साहित्य को मौखिक रूप से जीवित रखा। एक पीढि़ से दूसरी पीढि़ तक लाते रहा। बौद्ध धर्म के लोग हमेशा ऐसे संवादों में शामिल होते हैं जिसमें मूल्यों, नैतिक शिक्षाओं और जीवन शिक्षा को बढ़ावा मिलता है। ज्ञान की पारंपरिक धरोहर को आगे पहुंचाने की रीति बौद्ध परिवारों के बीच बांधने वाले धागे का काम करता है। महापरिनिब्बान सुत्त में भी भगवान बुद्ध ने परिवार के बंधनों का मजबूत बनाने के लिए सात सिद्धान्त दिये हैं जिन्हें अपरिहानीय धम्मा कहा जाता है।
Pic Credit: Pariksha pe charcha PM Youtube channel