300 किलो सोने का है महाबोधि‍ मंदिर का शिखर, ASI करती है देखरेख

बिहार के बोधगया विश्‍व के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध स्‍थलों में से एक है। यह स्‍थल बिहार को वैश्विक पहचान दिलाता है। इसी जगह पर भगवान बुद्ध ने सम्‍बोध‍ि की प्राप्ति की थी। इसी बोधगया में वे राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध हुए। बोधगया में पर्यटकों के घुमने लायक कई जगह है। यहां पर पर्यटकों को आकर्षित करने वाले स्‍थानों में महाबोध‍ि मंदिर सबसे आगे है।

यह मंदिर 1500 वर्ष प्राचीन है। मंदिर स्‍थापत्‍य कला का यह एक अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर बहुत ही सुन्‍दर है। 300 किलो सोने का शिखर इसकी सुन्‍दरता को चौगुना कर देता है। यह स्‍वर्ण जडित शिखर सोने पर सुहागा के समान है।

एलेक्‍जेंडर कनिंघन ने इसे पुन: खोजा

एलेक्‍जेंडर कनिंघन ने 19 वीं सदी में इसे पुन: खोजा था।

300  किलो सोने का है शिखर

मंदिर स्‍थापत्‍य कला में मंदिर के सबसे उपरे भाग को ‘शीर्ष’ या ‘शिखर’ कहा जाता है। थाईलैंड के राजा और वहां के बौद्ध लोगों ने इसे महाबोधि‍ मंदिर को दान दिया था। इसे बैंकाक से विशेष विमान से लाया गया था। कुछ लोग इसका वजन 290 किलो बताते हैं तो कुछ मिडीया रिपोर्ट में 289 किलो बताया गया है।

थाईलैंड से 300 किलो का सोने का प्‍लेट आया था। जिसे मंदिर के शिखर के उपर चढ़ा दिया गया है।

कब लगा सोने का शिखर

स्‍वर्ण प्‍लेट 2013 में थाईलैंड से आया था। इसे एक विशेष विमान से बैंकाक से लाया गया था। मंदिर के शिखर पर चढ़ाने के बाद महाबोधि मंदिर की सुंदरता कई गुना बढ़ गई। रात्रि में इसकी चमक पर्यटकों के दिलों को छू लेता है। पर्यटक देर तक इसकी चमक को देखते रहते हैं। महाबोधि मंदिर देखने वालों की नजरें इस शिखर पर अटक जाती है।

सेल्‍फी प्रेमी इसे नहीं भू‍लते

पर्यटक यहाँ आते हैं तो महाबोधि मंदिर का फोटो जरुर लेते हैं। वे इसका भी फोटो लेना नहीं भूलते। वीडियो बनाने वाले भी इसे नहीं छोडते। मंदिर के बाहरी आकर्षण में यह सबसे लोकप्र‍िय है।

2017 में पहली बार सोने की शिखर की साफ-सफाई और पॉलिश

वैसे तो सोना पृथ्‍वी का सबसे कम प्रतिक्रियाशील पदार्थ है। फिर भी, धूल, धूप और प्रथम बारिश के रूप में होने वाली अम्‍लिय वर्षा से इसकी चमक फिकी होती रहती है। महाबोधि‍ मंदिर समिति ने सन 2017 में पहली बार 20 सदस्यों की विशेषज्ञों की एक टिम थाइलैंड से बुलाई थी और इसका साफ-सफाई कराई थी। और इस पर स्‍वर्ण का पॉल‍िश भी कराया गया था।

2020 में कोविड के कारण नहीं हो पाया साफ-सफाई

इसका पुन: साफ-सफाई 2020 में होना तय था। परन्‍तु वैश्विक महामारी कोविड के कारण थाइलैंड से आयी विशेषज्ञों की टिम को महाबोधि मंदिर समिति ने वापस भेज दिया था।

2022 में पुन: हुई सोने की शिखर की साफ-सफाई

पांच साल के बाद एक फिर बोधगया स्थित महाबोध‍ि मंदिर के 300 किलो सोने से जड़े शिखर की साफ-सफाई के लिए 5 सदस्‍यों की एक विशेषज्ञों की टिम आयी और इसका साफ-सफाई और पॉलिश किया । अब एक बार फिर यह अपने पुराने अंदाज में पर्यटकों के आंखों की चमक बन गई है।

भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (ASI) करती है महाबोध‍ि मंदिर का देखरेख

भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण महाबोध‍ि मंदिर का देखरेख करती है है। ASI  की स्‍थापना 1861 में हुआ था। बिना इसके अनुमति के यहां कुछ नहीं हो सकता है। यहां किसी भी तरह का कार्य (ASI) के अनुमति के बिना नहीं हो सकता है। जब थाईलैंड के राजा भूमिबोल अतुल्‍य ने मंदिर के शिखर को सोने से जडित करने का आग्रह किया तो महाबोध‍ि मंदिर ने इसकी सूचना ASI को दिया। ASI के अनुमति से ही यह कार्य हो सका।

एलेक्‍जेंडर कनिंघम ने किया था महाबोध‍ि मंदिर की खोज

एलेक्‍जेंडर कनिंघम ने किया था महाबोध‍ि मंदिर की खोज ने इसकी खोज 19वीं सदी में किया था।

यूनेस्‍को की सूची में शामिल

महाबोध‍ि मंदिर 2002 में ही वैश्विक धरोहर के रूप में घोष‍ित हो  चुका है।

सम्राट अशोक ने कराया निर्माण

इसका निर्माण सम्राट अशोक ने कराया है। 260 ईसा पूर्व कराया था।

Pic credit: Mahabodhi Temple, Bodhgaya

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