बुद्ध ने अपने प्रबुद्धि के बाद का पहला सप्ताह बोधि वृक्ष के नीचे बिताया, मुक्ति के गहरे आनंद का अनुभव करते हुए। उन्होंने अपने गहरे अनुभव से उत्पन्न शांति और आनंद का स्वाद लिया। वे रात के प्रथम याम में प्रतीत्य-समुत्पाद का पहले अनुलोम मनन किया इसके बाद वे इसका प्रतिलोम मनन किया। अनुलोम में से प्रतीत्य-समुत्पाद की बारह कडि़यों को आदि से अंत की ओर मनन किया और प्रतिलोम में वे अंत से आदि की ओर बारह कडियों का मनन किया।
अनुलोम प्रतीत्य-समुत्पाद की कडियाँ पालि में इस प्रकार से हैं:-
अविज्जापच्चया सङ्खारा, सङ्खारपच्चया विञ्ञाणं, विञ्ञाणपच्चया नामरूपं, नामरूपपच्चया सळायतनं, सळायतनपच्चया फस्सो, फस्सपच्चया वेदना, वेदनापच्चया तण्हा, तण्हापच्चया उपादानं, उपादानपच्चया भवो, भवपच्चया जाति, जातिपच्चया जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा सम्भवन्ति – एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स समुदयो होति।
इसका हिन्दी अर्थ है कि अविद्या से संस्कार की उत्पत्ति होती है। संस्कार से विज्ञान उत्पन्न होता है। विज्ञान से नाम-रूप, नाम-रूप से सळायतन, सळायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना और वेदना से तण्हा, तण्हा से उपादान, उपादान से भव, भव से जाति, जाति से जरा यानि बुढ़ापा, मरण, शोक, रोना, पिटना, दु:ख, चित्त विकार और चित्त-खेद उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार से केवल दु:ख ही दु:ख ही उत्पत्ति होती है।
प्रतीत्य-समुत्पाद की प्रतिलोम की कड़ियाँ पालि में इस प्रकार से हैं:-
अविज्जायत्वेव असेसविरागनिरोधा सङ्खारनिरोधो, सङ्खारनिरोधा विञ्ञाणनिरोधो, विञ्ञाणनिरोधा नामरूपनिरोधो, नामरूपनिरोधा सळायतननिरोधो, सळायतननिरोधा फस्सनिरोधो, फस्सनिरोधा वेदनानिरोधो, वेदनानिरोधा तण्हानिरोधो, तण्हानिरोधा उपादाननिरोधो, उपादाननिरोधा भवनिरोधो, भवनिरोधा जातिनिरोधो, जातिनिरोधा जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा निरुज्झन्ति – एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स निरोधो होती’’ति।
इसका हिन्दी अर्थ है कि अविद्या के विनाश से संस्कार का विनाश होता है। संस्कार के विनाश से विज्ञान का विनाश होता है। विज्ञान से नाम-रूप, नाम-रूप से सळायतन, सळायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना और वेदना से तण्हा, तण्हा से उपादान, उपादान से भव, भव से जाति, जाति से जरा यानि बुढ़ापा, मरण, शोक, रोना, पिटना, दु:ख, चित्त विकार और चित्त-खेद का नाश होता है। इस प्रकार केवल दु:ख ही दु:ख का विनाश होता है।
अविद्या दु:ख का मूल कारण
इसमें भगवान बुद्ध ने मूलत: कहा कि अविद्या ही जीवन की सारी परेशानियों की जड है। अत: जीवन को सुखमय बनाने के लिए विद्या ही सबसे बड़ी कुंजिका है। इसलिए भगवान बुद्ध ने लगातार 45 वर्षों तक पैदल चलकर कठीन साधना से प्राप्त ज्ञान को बांटा।
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