बोधगया में महाबोधि मंदिर सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं। और उनका इतिहास सीधे सीधे भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के तुरंत बाद के इतिहास से जुडा है।
बौद्ध पर्यटक इन स्थानों पर विशेष रूप से एकांत में रहकर ध्यान करना चाहते हैं। इस पावन भूमि को वे अपने जीवन के एक आनंदायक क्षण के तरह बिताना चाहते हैं।
अगर आप भी बोधगय आना चाह रहे हैं तो इन अजपाल वृक्ष के बुद्ध से संबंध को अवश्य जान लें।
भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद 45 वर्षों तक लगातार पैदल चारिका करते हुए आम जन को ज्ञान बांटे। वे अनगिनत लोगों से मिले और उनके प्रश्नों का समाधान किया। वे ज्ञान तो सबसे पहले उत्तर प्रदेश के सारनाथ में दिये। परन्तु उनसे सबसे पहले प्रश्न महाबोधि मंदिर के परिसर में ही एक ब्राह्मण के द्वारा किया गया। यह प्रश्न ब्राह्मण के संबंध में था। इसके जबाब में बुद्ध ब्राह्मण के कर्तव्यों को बताते हैं और अंत में कहते हैं कि ब्राह्मण के जैसा संसार में काई नहीं है।
पाँचवे सप्ताह
चार सप्ताह तो वे बोधि वृक्ष के ही आसपास बिताये। पांचवें सप्ताह में वे अजपाल निग्रोध वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करने लगे। पाँचवे सप्ताह में वे अजपाल वृक्ष के पास गये।
अजपाल निग्रोध नामकरण
निग्रोध पालि भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है- बरगद का वृक्ष। इस वृक्ष का नाम अजपाल पडने का कारण पालि साहित्य में बताया गया है यहाँ पर अजपाल नामक बकरी चराने वाले आकर बैठते थे इसलिए इस स्थान का नाम अजपाल पड़ा। अजपाल एक बर्गद का पेड़ था। पुरा एक सप्ताह तक बुद्ध मोक्ष का आनन्द लेते रहे।
ब्राह्मण ने किया पहला प्रश्न
बौद्ध धर्म का ब्रह्मणों से बहुत ही गहरा संबंध रहा है। यह संबंध कोई नया नहीं है बल्कि यह ज्ञान प्राप्ति के महज पांच सप्ताह बाद ही स्थापित हो गया था। बुद्ध ने कभी भी ब्राह्मण के संबंध में अपमानित शब्दों का प्रयोग नहीं किया। वे हमेशा से ब्राह्मण धर्म का पालन करने वालों का सम्मान किये।
यहाँ पर भगवान से मिलने के लिए एक ब्राह्मण आये। उन्होंने भगवान से कुशल क्षेम पूछने के बाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा कि ब्राह्मण किसे कहते हैंॽ
कित्तावता नु खो, भो गोतम, ब्राह्मणो होति, कतमे च पन ब्राह्मणकरणा धम्मा’’ति?
हे गौतम! बुद्ध ब्राह्मण कौन होता है? और ब्राह्मण का करणीय क्या होता है? ब्राह्मण का धर्म क्या होता है?
भगवान बुद्ध पालि भाषा में देते हैं उत्तर
छठी-पांचवी सताब्दी ई० पू० में मगध क्षेत्र में आम बोलचाल की भाषा पालि ही थी। बुद्ध ने जितना भी उपदेश दिया उसे पालि भाषा में संग्रहीत किया गया है। जिसे पालि तिपिटक कहते हैं।
भगवान बुद्ध उत्तर देते हुए कहते हैं कि:
यो ब्राह्मणो बाहितपापधम्मो।
निहुंहुङ्को निक्कसावो यतत्तो।
वेदन्तगू वुसितब्रह्मचरियो।
धम्मेन सो ब्रह्मवादं वदेय्य।
यस्सुस्सदा नत्थि कुहिञ्चि लोके’’ति॥
जिसका अर्थ है कि जो ज्ञानि व्यक्ति बिना पाप के हो, सभी प्रकार के मलों से मुक्त हो, उसमें किसी भी प्रकार का कोई अभिमान न हो, वह संयत जीवन व्यतीत करे, वेद में परांगत हो, वेदांग में परांगत हो, एक ब्रह्मचारी का जीवन यापन करे, ब्रह्मवादी धर्म का पालन करे वहीं ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी होता है। उसके जैसा तो संसार में कोई भी नहीं है।
बोधिवृक्ष से पश्चिम में है अजपाल वृक्ष
बोधि प्राप्ति के बाद सात सप्ताह तक बुद्ध बोधिमंदिर परिसर में ही रहे और ध्यान साधना किया। वे चार सप्ताह तो बोधि वृक्ष के समीप ही बिताया। पांचवे सप्ताह में वे बोधिवृक्ष से पश्चिम में कुछ दूरी पर स्थित अजपाल वृक्ष के नीचे एक सप्ताह तक ध्यान किया।
pic credit: Mahabodhi Temple, Bodhgaya