बौद्ध लोगों के लिए बोधगया का नाम कोई नई बात नहीं है। हर बौद्ध का सपना होता है कि जीवन में एक बार बोधगया अवश्य पधारे। यहां पर पर्यटकों को समय बिताने और अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुन: याद करने करने लिए कई चीजें हैं।
सातवे सप्ताह
बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह तक बोधगया में रुके। वे सात सप्ताह में सात विभिन्न जगहों पर एक एक सप्ताह के लिए सात कार्य किये। सातवें सप्ताह में वे राजायतन वृक्ष केपास आये। इस सप्ताह में बुद्ध राजायतन वृक्ष के पास गये। वहां पर एक सप्ताह तक मोक्ष का आनन्द का लिये।
ओडिसा के दो व्यापारी तपस्सु और भल्लिक
जब भगवान बुद्ध एक सप्ताह तक राजायतन वृक्ष के नीचे ध्यान, चिंतन-मनन किया तो यहीं पर उत्कल (ओडिसा) का दो व्यापारी तपस्सु और भल्लिक भगवान से मिलने आये। भारत में तीर्थाटन और देशाटन का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। और यहां पर व्यापार करने के लिए भी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते थे। तपस्सु और भल्लिक दोनों ही गुड के व्यापारी थे। जो ओडिसा से गुड का व्यापार करने मगध आ रहे थे। मगध उस समय बहुत ही समृद्ध और शक्तिशाली महाजनपद हुआ करता था।
तपस्सु और भल्लिक के देवता ने उन्हें इस प्रकार पालि में कहा:-
‘‘अयं, मारिसा, भगवा राजायतनमूले विहरति पठमाभिसम्बुद्धो; गच्छथ तं भगवन्तं मन्थेन च मधुपिण्डिकाय च पतिमानेथ; तं वो भविस्सति दीघरत्तं हिताय सुखाया’’ति।
इसका हिन्दी इस प्रकार है कि मित्र! बुद्ध होकर यह भगवान राजायत वृक्ष के नीचे विहार कर रहे हैं। जाओ उन भगवान को मट्ठा और लड्डु से सम्मानित करो। ऐसा करने से तुम दीर्घ काल तक हित और सुख का लाभ होगा।
वे दोनों भगवान से जाकर इस प्रकार से बोलते हैं:-
‘‘पटिग्गण्हातु नो, भन्ते, भगवा मन्थञ्च मधुपिण्डिकञ्च, यं अम्हाकं अस्स दीघरत्तं हिताय सुखाया’’ति।
जिसका हिन्दी इस प्रकार है कि भन्ते! भगवान! हमारे मट्ठे और गुड के लड्डुओं को स्वीकार कीजिये, जिससे कि चिरकाल तक हमारा हित और सुख हो।
जब भगवान बुद्ध उनका दान स्वीकार कर लेते हैं।
तपस्सु और भल्लिक थे बुद्ध के पहले उपासक
जब बुद्ध ने इनका दिया हुआ गुड और मट्ठा स्वीकार कर लिया तो वे दोनों बुद्ध और धम्म की शरण में चले आते हैं । वे कहते हैं कि:-
‘‘एते मयं, भन्ते, भगवन्तं सरणं गच्छाम धम्मञ्च, उपासके नो भगवा धारेतु अज्जतग्गे पाणुपेते सरणं गते’’ति।
जिसका हिन्दी इस प्रकार से है कि
भन्ते! हम दोनों भगवान और धम्म की शरण जाते हैं। आज से भगवान हम दोनों को अंजलिबद्ध शरणागत उपासक मानें।
इस प्रकार से दोनों व्यापारी तपस्सु और भल्लिक प्रथम उपासक हो हुए।
पहली बार हुई बुद्ध और धम्म शरण जाने की शुरुआत
बोधगया में ही बौद्ध धर्म के संघ की स्थापना हो चुकी थी। ओडिसा दो व्यापारियों ने बुद्ध से उपासक होने का आग्रह किया था। इस प्रकार से देखा जाए तो बुद्ध ने बोधगया में न सिर्फ ज्ञान प्राप्त किया बल्कि वे यहां पर दो व्यक्तियों को ज्ञान भी दिये।
सातवें सप्ताह के बाद बुद्ध गये सारनाथ प्रथम उपदेश देने
सातवें सप्ताह के अंत में, बुद्ध ने अपना पहला उपदेश देने के लिए सारनाथ जाने का निर्णय किया, जिसे धम्मचक्कपवत्तन कहा जाता है। यह उसके धम्म शिक्षा का प्रारंभ करने का समय था, जहां उन्होंने चार आर्य सत्य और आर्य आष्टांगिक मार्ग का उपदेश करके बौद्ध धर्म की नींव रखी। इन सात हफ्तों की घटनाएं बौद्ध इतिहास में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे सिद्धार्थ गौतम का बुद्ध बनने और शिक्षक के रूप में उनके कार्य की शुरुआत हुआ।
Pic credit: Mahabodhi Temple, Bodhgaya