बोधगया में बुद्ध ने ब‍िताया बोध‍िवृक्ष के समीप प्रथम चार सप्‍ताह । जानें बुद्ध के चार सप्‍ताह की कहानी

बोधगया बौद्ध धर्म का सबसे लोकप्रिय स्‍‍थल है। बिहार के आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है बोधगया। बिहार में आयें तो बोधगया आना कभी न भूलें। यहां घुमना ज्ञान के नगरी में घुमने के जैसा है। यहां पर का हर स्‍थान किसी न किसी रूप से भगवान बुद्ध के कार्यों से जुडा रहा है। पहले से जानकारी लेकर घुमना आपके अनुभव को कई गुना बढ़ा देगा और अनुभव को यादगार बना देगा। महाबोधि वृक्ष का दर्शन बौद्ध पर्यटकों के लिए परम सौभग्य का विषय है। यहां पर आने वाले पर्यटक को बोधगया के स्थान के बारे में जरुर जानना चाहिए।

पहला सप्‍ताह

बुद्ध ने पहले सप्‍ताह बोध‍िवृक्ष के नीचे ब‍िताया। वे पहली रात के प्रथम याम में प्रतीत्‍य-समुत्‍पाद का पहले अनुलोम मनन किया इसके बाद वे इसका प्रतिलोम मनन किया। अनुलोम में से प्रतीत्‍य-समुत्‍पाद की बारह कडि़यों को आदि से अंत की ओर मनन किया और प्रतिलोम में वे अंत से आदि की ओर बारह कडियों का मनन किया। इन कड‍ियों का संक्षेप में सार यह है कि बुढ़ापा, मरण, शोक, रोना, पिटना, दु:ख, चित्त विकार और चित्त-खेद उत्‍पन्‍न होते हैं। इस प्रकार से केवल दु:ख ही दु:ख ही उत्‍पत्ति होती है। इसमें भगवान बुद्ध ने मूलत: कहा कि अविद्या ही जीवन की सारी परेशान‍ियों की जड़ है।

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दूसरा सप्ताह

भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ति के दूसरे सप्‍ताह में बोध‍िवृक्ष को देखा। बिना पलक झपकाये। ज्ञान प्राप्‍ति के बाद भगवान बुद्ध बोधगया में सात सप्‍ताह तक रहे। जहां पर वे सात सप्‍ताह बिताये वह पुरा परिसर ही बोधिमंड कहलाता है। आज यह पुरा का पुरा परिसर महाबोधि मंदिर के परिसर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि उन्होंने बोधि वृक्ष की ओर कृतज्ञता के साथ खड़े होकर देखा। बुद्ध बोधि‍ वृक्ष से उठकर उत्तर-पूर्व की दिशा में खड़े होकर एक सप्‍ताह तक बोधि वृक्ष को देखते हुए बिताया। यह स्‍थान बौद्ध साहित्‍य में अनिमेष चैत्‍य कहा जाता है।

विस्‍तृत जानकारी के लिए पढ़े: बोधगया का अनिमेष चैत्‍य जहां से बुद्ध ने बिना पलक झपकाये एक सप्‍ताह तक बोध‍िवृक्ष को देखा

तीसरे सप्ताह

तीसरे सप्‍ताह में बुद्ध पूर्व से पश्चिम की ओर टहलते हुए बिताए। पुरा एक सप्‍ताह तक वे टहलते रहे। इस टहलने के स्‍थान को रत्‍न-चंक्रम चैत्‍य के नाम से जाना जाता है।  इस समय, उन्होंने अपने दर्शन किए हुए सत्यों की समझ को और गहरा करना जारी रखा।  महाबोध‍ि मंदिर से उत्तर दिशा में है रत्‍न चंकम चैत्‍य। रत्‍न चंकम चैत्‍य वैसे है तो महाबोध‍ि मंदिर के उत्तर की दिशा में। परन्‍तु बुद्ध जिस दिशा में चले थे वह है पुरब से पश्चिम की ओर। बुद्ध यहां पर अनिमेंष चैत्‍य से आये थे। पालि भाषा में ही भगवान बुद्ध के सभी उपदेश को सबसे पहले संरक्षित किया गया। पालि में ‘क्र, प्र, च्र’ इत्‍यादि नहीं होते हैं। इसीलिए रत्‍न चंक्रम को ही पालि भाषा में रत्‍न चंकम कहा जाता है।

और अध‍िक जानकारी के लिए पढ़े: बोधगया का रत्‍न चंकमन चैत्‍य जहां बुद्ध एक सप्‍ताह तक टहलते रहे

चौथे सप्ताह

चौथे सप्ताह में, बुद्ध ने जिस स्‍थान पर पुरा सप्‍ताह बिताया उसका नाम है रत्‍न-चैत्‍य। इसी स्‍थान पर वे बौद्ध धर्म के सबसे गंभीर दर्शन अभिधम्‍म पर विचार किये। पालि साहित्‍य में इस प्रकार से वर्णन आता है कि इस स्‍थान को देवताओं ने बनाया है। इस स्‍थान पर भगवान बुद्ध ने एक सप्‍ताह तक अभिधम्‍म पर चिंतन-मनन किया। चौथे सप्‍ताह को ही अभिधम्‍म की प्राप्ति का काल कहा जाता है।

विस्‍तृत जानकारी के लिए पढ़ें: बोधगया का वह स्‍थान जहां बुद्ध ने किया बौद्ध अभिधम्‍म दर्शन पर च‍िंतन-मनन

Pic credit: Mahabodhi Temple Bodhgaya

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