जानें गौतम बुद्ध की माता महामाया के गुणों के बारे में

बौद्ध धर्म के अनुसार बुद्ध बनने के लिये आपको कर्म करना होता है। कोई भी व्‍यक्ति बुद्ध बन सकता है। भगवान बुद्ध बुद्धत्‍व पाने से पहले वे एक सामान्‍य इंसान थे। वे बोधि‍ तब प्राप्‍त किये जब बोध‍ि वृक्ष के नीचे व‍े सम्‍बोध‍ि/ज्ञान  प्राप्‍त की। बुद्ध होने से पहले वे भी एक साधारण व्‍यक्ति का जीवन ज‍िये। वे जन्‍म तो एक राज परि‍वार में लिये थे परन्‍तु वे सुख सुविधाओं को त्‍याग दिये। मगध में वे एक साधारण व्‍यक्ति की तरह नहीं अपितु एक भिक्षु की तरह छ: वर्षों तक जीवन यापन किये। विभ‍िन्‍न आचार्यों से शिक्षा ग्रहण किये। तब ज्ञान की प्राप्ति की।

ऐसे महापुरुष होने के लिये मां में भी कोई योग्‍यता होनी चाहिएॽ या दूसरे शब्‍दों में कैसे मां का लालन पालन एक बुद्ध जैसे व्‍यक्ति को जन्‍म देता है। उनका लालन पालन किस प्रकार से हो कि वे सांसारिक सुख सुविधाओं का त्‍याग करें और सर्वजन हित के लिये अपना जीवन समर्पित कर दें।

पालि साहित्‍य, थेरवाद बौद्ध धर्म का साहित्‍य, में बताया गया है कि जब तावतिंस लोक (स्‍वर्ग) से बोध‍िसत्‍व के रूप में बुद्ध जम्‍बूद्वीप में जन्‍म लेने के लिये व‍िचारे तो वे अपनी माता के बारे में भी विचारे। बोध‍िसत्‍व वह व्‍यक्ति होता है जो बाधि प्राप्ति के ल‍िये कोशिश कर रहा हो। जब माता के विषय में सोचने लगे तो वे कुछ गुणों से युक्‍त होने पर ही किसी महि‍ला को अपनी माता के रूप में चयन करने की सोची।

शील (सदाचार) का पालन करने वाली

पाल‍ि साहित्‍य के जातक अट्ठकथा में कहा गया है कि बुद्ध की मां चंचल स्‍वभाव की नहीं होती हैं। उनका मन शांत होता है। अगर मन अशांत रहेगा तो वे किसी कार्य को सम्‍यक प्रकार से नहीं कर सकती हैं। बुद्ध को पालन करना एक बहुत ही जिम्‍मेवारी भरा कार्य होता है। जिन व्‍यक्तियों का मन शांत नहीं होता है वे सांसारिक गतिविधि‍यों में अधिक भाग लेती हैं। अत: की मां होने के लिए मन का शांत होना बहुत जरुरी है।

किसी भी शराब आदि का व्‍यसन भी नहीं

बुद्ध की मां को किसी भी प्रकार की व्‍यसन से मुक्‍त होना चाहिए। वे जन्‍म से अखंड इस प्रकार के व्‍यसन मुक्‍त होनी चाहिए।

दस पारमिताएं

पामिता का अर्थ होता है कि पार जाना। किसी का कार्य की एक सीमा होती है। परन्‍तु उस सीमा को पार जाने को ही पारमिता कहते हैं। वे अच्‍छी गुणों से युक्‍त होनी चाहिए। वह दान करने वाली होतीं हैं। उनका सदाचार भी बहुत उच्‍च कोटि का होता है। वाणी से, काय से और मन से बहुत संयमित होती हैं। इन तीनों ही प्रकारों से किसी को किसी प्रकार का अहित नहीं सोचती हैं। उनमें त्‍याग का भाव बहुत अधि‍क होता है। ज्ञान अर्जन करने की लालशा होती है। किसी से भी ज्ञान अर्जत करने के लिए उत्‍सुक होते हैं। उत्‍साह की कोई कमी नहीं होती है। अच्‍छे कर्मों को करने में बहुत ही कटिनाई आती है। तो पर भी वे अच्‍छे कर्म को करके ही दम लेती हैं। कठिनाईयों से लड़ने का शाहस होता है। बोध‍िसत्‍व जिस महिला का अपने माता के रूप में चयन करते हैं वे वे क्षमाशील भी होती हैं। बौद्ध धर्म में क्षमा करने को तप के समान ही सम्‍मान और महत्‍व दिया गया है। वे सदा सच बोलने वाली होती हैं। उनके कार्य सत्‍य से युक्‍त एवं सत्‍य के वि‍जय के लिए होनी चाहिए। उनका संकल्‍प भी द्ढ़ होता है। जिस भी कार्य को करने का संकल्‍प वे लेती हैं वे उस कार्य का सिद्धि तक पहुंचा कर ही चैन से बैठती हैं। उनमें संसार के सभी प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव होता है। वे जलचर, नभचर, अंडज और मानव के प्रति भी असि‍म प्रेम रखती हैं। जो कार्य उनके वश में न हो उनके लिए अनावश्‍यक चिंता न करके उसके प्रति उपेक्षा का भाव रखती हैं।

पंचशील का पालन

बुद्ध की माता अखंड रूप से पंच शील का पालन करती हैं। पंच शील में पांच चीजों जैसे कि जीव हत्‍या, चोरी, मैथुन, झूठ बोलना और मादक पदार्थों से विरत रहना पडता है।

जब बुद्ध ने तावतिंस लोक (स्‍वर्ग) से इनता गुणों से युक्‍त महिला के बारे में जम्‍बूद्वीप में वि‍चार किये तो महामाया ही एक मात्र मह‍िला मिली। इस प्रकार बोधसत्‍व सिद्धार्थ ने बुद्ध होने के लिए जम्‍बूद्वीप में जन्‍म लेने के लिए जिस माता की तलाश शुरु किया था वो पुरा हो गया। तो गौतम बुद्ध की माता महामाया इतने गुणों से युक्‍त थी। या यूं कहें कि उनका जीवन इतना सदाचार और त्‍याग से भरा था।

Pic credit: Mahabodhi Temple, Bodhgaya

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