जयपुर के इस मंदिर के पट सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन खुलते हैं। साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है एकलिंगेश्वर मंदिर। Mahashivaratri: 2024, Fri, 8 Mar, 2024

क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि? महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या अंतर है?

एक होता है शिवरात्रि और एक होता है महाशिवरात्रि। कई लोग कहते हैं महाशिवरात्रि और शिवरात्रि एक ही है। लेकिन दोनों में अंतर है। शिवरात्रि हर महीने में मनाई जाती है। लेकिन महाशिवरात्रि केवल फाल्गुन महीने में ही मनाई जाती है। शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि साल में एक बार फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को  मनाई जाती है। इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। हिंदू धर्म में यह परंपरा उस समय से आज तक चली आ रही है।

महाशिवरात्रि व्रत 2024 में कब है? 8 मार्च 2024

इस साल महाशिवरात्रि 8 मार्च शुक्रवार को मनायी जायेगी । हिंदू धर्म में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है । महाशिवरात्रि हर राज्य में अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है । आईए जानते हैं राजस्थान के जयपुर में यह पर्व कैसे मनाया जाता है ।

साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है एकलिंगेश्वर मंदिर

जयपुर राजस्थान की राजधानी है । जयपुर गुलाबी नगरी के नाम से पहले से ही प्रसिद्ध है। यहां के प्रसिद्ध बाजार, किले और राजमहल इसकी खूबसूरती को दुगना कर देते हैं । यहां के महलों से भी पुरानी कई मंदिर है। जिनमें से एक मंदिर है भगवान शिव की। इसके बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर जयपुर से भी पुराना है। इस मंदिर का नाम है एकलिंगेश्वर मंदिर। यह मंदिर जयपुर के मोती डूंगरी में स्थापित है। इस मंदिर को शंकर गढ़ी के नाम से भी जानते हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है । पहाड़ी के निचले स्थल में बिड़ला मंदिर  स्थित है। बिड़ला मंदिर के कुछ ही दूरी पर भगवान गणेश की  मंदिर स्थित है। एकलिंगेश्वर मंदिर की विशेषता यह है कि यह आम श्रद्धालुओं के लिए वर्ष में केवल एक बार महाशिवरात्रि के दिन खुलता है।

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जयपुर के राजघराने के लोग महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में सबसे पहले पूजा करते थे। राज परिवार के समय इस मंदिर में भगवान शिव का पूजा होता था। राजघराने के लोग हर साल सावन में सहस्‍त्र घाट रूद्राभिषेक करवाते थे। इस पूजा में जो भी खर्च होता था वह राजघराने के तरफ से ही होता था। महाशिवरात्रि के दिन पूजा करने के लिए जयपुर के लोगों के साथ – साथ और कई गांव से लोग आते थे। इस मंदिर से लोंगो की इतनी श्रद्धा निष्ठा भरी है कि एक दिन पहले से ही सभी लोग दर्शन के लिए आने लगते है। दशर्न के लिए लंबी लाईन लगी रहती है।

जयपुर के बसने से पहले हुई थी इस मंदिर की स्थापना

ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर जयपुर से भी पुराना है। यह मंदिर बनने के बाद पूरे परिवार सहित भगवान शिव को यहां विराजमान किया गया था। लोंगो का मानना है कि कुछ दिन बाद ही भगवान शिव की परिवार की मूर्ति गायब हो गयी थी, लेकिन पुन: उनकी मूर्तियां विराजमान की गयी। फिर से वही हुआ मूर्ति फिर गायब हो गयी। इस घटना के बाद लोग डर गये और फिर कभी भगवान शिव के परिवार की मूर्ति नहीं रखी गयी।

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