ज्ञान प्राप्ति के सात सप्ताह तक बिहार के बोधगया में बुद्ध क्या क्या किये। जानें पुरी कहानी।
इन साप्ताह में भगवान बुद्ध ने सिर्फ ध्यान किया बल्कि वे ज्ञान भी दिये, लोगों की संकाओं का समाधान भी किया। साथ ही साथ वे अपने संघ की नीव भी रखे।
इन साप्ताह में भगवान बुद्ध ने सिर्फ ध्यान किया बल्कि वे ज्ञान भी दिये, लोगों की संकाओं का समाधान भी किया। साथ ही साथ वे अपने संघ की नीव भी रखे।
पहली रात के प्रथम याम में प्रतीत्य-समुत्पाद का पहले अनुलोम मनन किया इसके बाद वे इसका प्रतिलोम मनन किया बोधिवृक्ष को देखा। बिना पलक झपकाये। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध बोधगया में सात सप्ताह तक रहे। बुद्ध पूर्व से पश्चिम की ओर टहलते हुए बिताए। वे बौद्ध धर्म के सबसे गंभीर दर्शन अभिधम्म पर विचार किये।
भन्ते! भगवान! हमारे मट्ठे और गुड के लड्डुओं को स्वीकार कीजिये, जिससे कि चिरकाल तक हमारा हित और सुख हो।
जब भगवान बुद्ध उनका दान स्वीकार कर लेते हैं।
तपस्सु और भल्लिक थे बुद्ध के पहले उपासक
बौद्ध धर्म का ब्रह्मणों से बहुत ही गहरा संबंध रहा है। यह संबंध कोई नया नहीं है बल्कि यह ज्ञान प्राप्ति के महज पांच सप्ताह बाद ही स्थापित हो गया था। बुद्ध ने कभी भी ब्राह्मण के संबंध में अपमानित शब्दों का प्रयोग नहीं किया। वे हमेशा से ब्राह्मण धर्म का पालन करने वालों का सम्मान किये।
चौथे सप्ताह में, बुद्ध ने जिस स्थान पर पुरा सप्ताह बिताया उसका नाम है रत्न गृह चैत्य। रत्न का अर्थ है ज्ञान रूपी रत्न। बौद्ध धर्म अपने ज्ञान विधि और दर्शन के कारण ही पुरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ। भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग की खोज की। वे न तो अत्यंत कठोर पथ को अपनाने को कहे और न ही अपना जीवन बिल्कुल ही सुख सुविधाओं से घिरे होकर बिताने को कहा। ज्ञान प्राप्ति के बाद 45 वर्षों तक वे धम्म की वर्षा लोगों के लिए पैदल चलकर किये।
तीसरे सप्ताह में बुद्ध पूर्व से पश्चिम की ओर टहलते हुए बिताए। पुरा एक सप्ताह तक वे टहलते रहे। इस टहलने के स्थान को रत्न-चंक्रम चैत्य के नाम से जाना जाता है। इस समय, उन्होंने अपने दर्शन किए हुए सत्यों की समझ को और गहरा करना जारी रखा।
बिना पलक झपकाये देखना। क्या आपने कभी किया है यह कार्य। किसी को बिना पलक झपकाये देखा है। अगर हां
भगवान बुद्ध ने मूलत: कहा कि अविद्या ही जीवन की सारी परेशानियों की जड है। अत: जीवन को सुखमय बनाने के लिए विद्या ही सबसे बड़ी कुंजिका है। इसलिए भगवान बुद्ध ने लगातार 45 वर्षों तक पैदल चलकर कठीन साधना से प्राप्त ज्ञान को बांटा।
मुचलिंद नामक नाग जब देखा कि अचानक से बारिश होने लगी। भगवान बुद्ध ध्यान की अवस्था में बैठे हैं। उन्हें ठंढ़ लग रही है। वे तो लोक हित के लिए ही ज्ञान की प्राप्ति किये हैं। उन्हें ठंढ़ न लगे, मच्छर न काटे, मक्खी भी परेशान न करे, किसी भी प्रकार से उन्हें कोई कष्ट न हो। कोई सांप या बिच्छू भी उन्हें न काट सके।
मंदिर स्थापत्य कला में मंदिर के सबसे उपरे भाग को ‘शीर्ष’ या ‘शिखर’ कहा जाता है। थाईलैंड के राजा और वहां के बौद्ध लोगों ने इसे महाबोधि मंदिर को दान दिया था। इसे बैंकाक से विशेष विमान से लाया गया था। कुछ लोग इसका वजन 290 किलो बताते हैं तो कुछ मिडीया रिपोर्ट में 289 किलो बताया गया है।